छोटी और बड़ी चीज़ें रफ़्त-ए-ज़िंदगानी हैं
घर में देगचों के साथ देगची भी होती है
अहमक़ आदमी अगर वज़ीर बन गया तो क्या
आली-शान बंगलों में छिपकिली भी होती है
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अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ इस क़दर मुझे
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में
हम ने कितने धोके में सब जीवन की बर्बादी की
जुनूँ पे जब्र-ए-ख़िरद जब भी होश्यार हुआ
हज़रत-ए-इक़बाल का शाहीं तो हम से उड़ चुका
ख़ुदा-बंदा
अद्ल
ज़िंदगी है मुख़्तलिफ़ जज़्बों की हमवारी का नाम
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
हुस्न को ग़ायत-ए-नज़र जाना
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ
शौक़ से लख़्त-ए-जिगर नूर-ए-नज़र पैदा करो