मिल भी जाए शहरियत अमरीका की तो क्या हुआ
फिर भी हम लाहौर के हैं फिर भी गुलबरगे के हैं
डॉक्टर भी हो गए एन्जनिर भी हो गए
गंदुमी है रंग अगर तो दूसरे दर्जे के हैं
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(923) Peoples Rate This
तजर्बात-ए-तल्ख़ ने हर-चंद समझाया मुझे
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
मैं बताता हूँ ज़वाल-ए-अहल-ए-यूरोप का प्लान
असास
तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
उधार
मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
जब्र ओ जहालत
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रा'नाई बहुत