ज़िंदगानी का खुला-पन अद्ल से मशरूत है
शहर क्या है जेल-ख़ाने में अगर आबाद है
अद्ल तस्ख़ीरात-ए-अहकामात की बुनियाद है
मुल्क वो आज़ाद जिस की अदलिया आज़ाद है
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साहब की बिपता
पुरानी मोटर
उन के फाटक में यूँ खड़े हैं हम
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती
ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
तहलील
मेरा इंतिख़ाबी मंशूर
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
ख़ुदा-बंदा
उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद
मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ