मैं बताता हूँ ज़वाल-ए-अहल-ए-यूरोप का प्लान
अहल-ए-यूरोप को मुसलामानों के घर पैदा करो
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अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है
उन के फाटक में यूँ खड़े हैं हम
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
मेराज-ए-वफ़ा
मीरज़ा 'ग़ालिब'
बद-नामी के ब'अद
तजर्बात-ए-तल्ख़ ने हर-चंद समझाया मुझे
मिलावट
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
उधार