हम ने कितने धोके में सब जीवन की बर्बादी की
गाल पे इक तिल देख के उन के सारे जिस्म से शादी की
Ahmad Faraz
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दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
हुस्न को ग़ायत-ए-नज़र जाना
बद-नामी के ब'अद
ख़ुदा-बंदा
उधार
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे
हँस मगर हँसने से पहले सोच ले
गा रहा हूँ ख़ामुशी में दर्द के नग़्मात मैं
बड़ी हैरत से अरबाब-ए-वफ़ा को देखता हूँ मैं
शौक़ से लख़्त-ए-जिगर नूर-ए-नज़र पैदा करो
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है