तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे
तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे
हम मरहला-ए-ज़ीस्त से आसाँ नहीं गुज़रे
कुछ ऐसे मक़ामात भी थे राह-ए-वफ़ा में
महसूस ये होता था कि इंसाँ नहीं गुज़रे
अर्सा हुआ वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ नहीं देखी
मुद्दत हुई नज़रों से गुलिस्ताँ नहीं गुज़रे
हर हादिसा-ए-नौ से उलझते गए हर गाम
हम रहगुज़र-ए-शौक़ से गुज़राँ नहीं गुज़रे
हैरान तो गुज़रे हैं ज़माने की रविश से
ये अपनी रविश थी कि परेशाँ नहीं गुज़रे
क्या हम को सताएगा ग़म-ए-गर्दिश-ए-दौराँ
हम तुझ से अभी ऐ ग़म-ए-जानाँ नहीं गुज़रे
(564) Peoples Rate This