ग़रीब-ख़ाना हमेशा से जेल-ख़ाना है
ग़रीब-ख़ाना हमेशा से जेल-ख़ाना है
मिरा मिज़ाज लड़कपन से लीडराना है
इलाही ख़ैर दिल-ए-ज़ार ओ ना-तवान की ख़ैर
कि आज उन का हर अंदाज़ हिटलराना है
तुम आज क्यूँ ये गवर्नर से बन के बैठे हो
कहो कहो मिरी जाँ किस को आज़माना है
दिलों का फ़र्श बिछा है जिधर निगाह करो
तुम्हारा घर भी दिलों का कबाड़-ख़ाना है
न देख आह मुझे ऐ निगाह-ए-यार न देख
कि आज तेरा हर अंदाज़ जारेहाना है
मुझे 'ज़मीर' ख़ुदा के करम से क्या न मिला
मिज़ाज गर्म तबीअत भी शाइराना है
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