ये बंदा-ए-ख़ाकसार या'नी 'नाज़िम'
आसी ओ गुनाहगार या'नी 'नाज़िम'
इंसाफ़ नहीं कि यहाँ से जाए नौमीद
बख़्शिश का उमीद-वार या'नी 'नाज़िम'
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बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
चले हो दश्त को 'नाज़िम' अगर मिले मजनूँ
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
आशिक़ जो हुआ है तू किसी पर नागाह
ज़ाहिर में अगरचे यार ग़म-ख़्वार नहीं
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
वो चश्मा दिला कहाँ से पैदा होगा