फैला के तसव्वुर के असर को मैं ने
मशहूर किया सई-ए-नज़र को मैं ने
ज़ाहिर दर-ओ-बाम से है नक़्श-ए-रुख़-ए-दोस्त
बुत-ख़ाना बना रक्खा है घर को मैं ने
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चले हो दश्त को 'नाज़िम' अगर मिले मजनूँ
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नीली-फ़ाम
बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
है जल्वा-फ़रोशी की दुकाँ जो ये अब इसी ने
अंदाज़-ओ-अदा से कुछ अगर पहचानूँ
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
जुम्बिश अबरू को है लेकिन नहीं आशिक़ पे निगाह
है रिश्ता एक फिर ये कशाकश न चाहिए