नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
दीन-ओ-दिल-ओ-होश ले गए वो यकबार
आए न दोबारा क्यूँ कर आएँ क्यूँ आएँ
सच है कि तजल्ली को नहीं है तकरार
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
है रिश्ता एक फिर ये कशाकश न चाहिए
सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नीली-फ़ाम
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
है दौर-ए-फ़लक ज़ोफ़ में पेश-ए-नज़र अपने
मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
न बुज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
कभी ख़ूँ होती हुए और कभी जलते देखा
है जल्वा-फ़रोशी की दुकाँ जो ये अब इसी ने