क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
क्या शान है बे-नियाज़ तेरी मैं कौन
रक्खूँ क्या हौसला पढ़ूँ क्या मक़्दूर
रोज़ा तेरा नमाज़ तेरी मैं कौन
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(731) Peoples Rate This
जब गुज़रती है शब-ए-हिज्र मैं जी उठता हूँ
वो जब आप से अपना पर्दा करें
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
रोने ने मिरे सैकड़ों घर ढा दिये लेकिन
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी