जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब
कुछ उस ने कहा है या लिखा है झूट सब
वो कब लिखता है और कब कहता है
क़ासिद कहता है यूँ कहा है झूट सब
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(797) Peoples Rate This
सज्जादा है मेरा फ़लक-ए-नीली-फ़ाम
वो चश्मा दिला कहाँ से पैदा होगा
वही माबूद है 'नाज़िम' जो है महबूब अपना
एक है जब मरजा-ए-इस्लाम-ओ-कुफ़्र
हो हिन्द का मद्ह-ख़्वाँ बरस में दो बार
शाएर बने नदीम बने क़िस्सा-ख़्वाँ बने
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का
न बुज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स