गो उस की नहीं लुत्फ़-ओ-इनायत बाक़ी
है उस से हमें एक हिकायत बाक़ी
रंजीदा हुआ वो बद-गुमानी से तो हो
है शिकवा न करने की शिकायत बाक़ी
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ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
गर अक़्ल-ओ-शुऊर की रसाई होती
क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
क्या बात है कारसाज़ तेरी मैं कौन
वो चश्मा दिला कहाँ से पैदा होगा
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात