बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
बन जाए न क्यूँ उक़्दा-ए-ख़ातिर हर पोर
पीरी है अगर शब-ए-जवानी की सहर
इस सुब्ह की शाम क्या है तारीकी-ए-गोर
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(699) Peoples Rate This
जब तिरा नाम सुना तो नज़र आया गोया
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
रोने ने मिरे सैकड़ों घर ढा दिये लेकिन
जुम्बिश अबरू को है लेकिन नहीं आशिक़ पे निगाह
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
है रिश्ता एक फिर ये कशाकश न चाहिए
रोज़ा रखता हूँ सुबूही पी के हंगाम-ए-सहर
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
हम ने सौ सौ तरह बनाई बात
चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ