ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
आइना ही तिरे रुख़ पे हैरान नहीं
है शाना ख़म-ए-ज़ुल्फ़ में ज़ंजीर-ब-पा
है सुर्मा रवाक़-ए-चश्म में गोशा-नशीं
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क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
न बुज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
उस बुत का कूचा मस्जिद-ए-जामे नहीं है शैख़
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
अंदाज़-ओ-अदा से कुछ अगर पहचानूँ
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
यहाँ काल से है तरह तरह की तकलीफ़
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब
उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब