आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
उस हुक्म को हम सुनें मलक से 'नाज़िम'
है इस को मुख़ालिफ़त मय-ए-नाब के साथ
खोलेंगे न हम रोज़ा नमक से 'नाज़िम'
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(783) Peoples Rate This
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
फैला के तसव्वुर के असर को मैं ने
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
रोज़ा रखता हूँ सुबूही पी के हंगाम-ए-सहर
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
उलझे जो रक़ीब से वो कल पी के शराब
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
हम उन की नज़र में समाने लगे
हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए