वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
मैं ने मयख़ाने से किस किस को निकलते देखा
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(567) Peoples Rate This
मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
घर की वीरानी को क्या रोऊँ कि ये पहले सी
पुर्सिश को अगर होंट तुम्हारे नहीं हिलते
क्या खाएँ हम वफ़ा में अब ईमान की क़सम
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
'नाज़िम' उसे ख़त में कहते हो क्या लिखिए
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
कहते हैं छुप के रात को पीता है रोज़ मय