शाएर बने नदीम बने क़िस्सा-ख़्वाँ बने
पाई न उन के दिल में मगर जा किसी तरह
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पुर्सिश को अगर होंट तुम्हारे नहीं हिलते
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
न बुज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
फैला के तसव्वुर के असर को मैं ने
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
'नाज़िम' उसे ख़त में कहते हो क्या लिखिए
जब तिरा नाम सुना तो नज़र आया गोया
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
जानाँ को सर-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है झूट सब