न बज़ला-संज न शाएर न शोख़-तब्अ रक़ीब
दिया है आप ने ख़ल्वत में अपनी बार किसे
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
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दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें
हक़ ये है कि का'बे की बिना भी न पड़ी थी
हर चंद लुत्फ़-ओ-मेहरबानी पेश आए
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें
कभी ख़ूँ होती हुए और कभी जलते देखा
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
कुफ़्र-ओ-ईमाँ से है क्या बहस इक तमन्ना चाहिए
आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
जाती नहीं है सई रह-ए-आशिक़ी में पेश