जब गुज़रती है शब-ए-हिज्र मैं जी उठता हूँ
ओहदा ख़ुर्शीद ने पाया है मसीहाई का
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बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
साहिल पर आ के लगती है टक्कर सफ़ीने को
इख़्लास की धोके पर हूँ माइल तेरा
जब तिरा नाम सुना तो नज़र आया गोया
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
आ जाए अगर हुक्म फ़लक से 'नाज़िम'
क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें