ईद है हम ने भी जाना कि न होती गर ईद
मय-फ़रोश आज दर-ए-मय-कदा क्यूँ वा करता
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मुहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
शाएर बने नदीम बने क़िस्सा-ख़्वाँ बने
चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
गो कुछ भी वो मुँह से नहीं फ़रमाते हैं
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
वो जब आप से अपना पर्दा करें
फूँक दो याँ गर ख़स-ओ-ख़ाशाक हैं
रोने ने मिरे सैकड़ों घर ढा दिये लेकिन
कम समझते नहीं हम ख़ुल्द से मयख़ाने को
इख़्लास की धोके पर हूँ माइल तेरा
ख़रीदारी है शहद ओ शीर ओ क़स्र ओ हूर ओ ग़िल्माँ की
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात