वो जब आप से अपना पर्दा करें
वो जब आप से अपना पर्दा करें
तो बंद-ए-क़बा किस तरह वा करें
अगर हम न उन की तमन्ना करें
तो वो हम पे क्यूँ नाज़ बेजा करें
उसे लोग क्यूँ मेहर-ए-ताबाँ कहें
जिसे दूर से भी न देखा करें
किया उस ने क़त्ल और मैं ने मुआ'फ़
अबस अहल-ए-शहर उस का चर्चा करें
फिरे क़ैस आवारा हम वो नहीं
कि माशूक़ को अपनी रुस्वा करें
मिरे दर्द-ए-दिल की ही पुर्सिश दवा
अगर मुझ को पूछें तो अच्छा करें
ख़ुदा बे-नियाज़ और बुत संग-दिल
कहो किस से हम राह पैदा करें
चलो फिर कहें उन से हम हाल-ए-दिल
यही फिर कहेंगे कि हम क्या करें
जिन्हें फ़स्ल-ए-गुल में न हो दस्तरस
कि सामान-ए-इशरत मुहय्या करें
वो क़ुमरी-ओ-बुलबुल को मुतरिब बनाएँ
गुल-ओ-सर्व को जाम-ओ-मीना करें
उन्हें क्या हो 'नाज़िम' क़यामत का डर
जो हर रोज़ इक फ़ित्ना बरपा करें
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