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मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर - सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम कविता - Darsaal

मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर

मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर

इक घर जुदा बनाएँगे दैर-ओ-हरम से दूर

जितने क़दम ज़्यादा हों उतना ज़्यादा अज्र

घर बरहमन का चाहिए बैतुस-सनम से दूर

शद्दाद शुक्र कर कि गई दर पे तेरी जान

जब था मक़ाम-ए-शिकवा कि मरता इरम से दूर

पैरव हूँ गरचे पास-ए-अदब भी ज़रूर है

रखता हूँ पाँव ख़िज़्र के नक़्श-ए-क़दम से दूर

चाहूँ कि हाल वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ

भागें हुरूफ़ वक़्त-ए-निगारिश क़लम से दूर

देखा है दाम-ओ-दाना का दस्तूर याँ नया

ख़ाल-ए-ज़क़न ही तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म से दूर

दम भर में जा पहुँचते हैं याँ के मुक़ीम वाँ

ये मरहला नहीं है सवाद-ए-अदम से दूर

हैं खेल सब मुनाफ़ी-ए-शौकत कि अहल-ए-जाह

रह जाते हैं शिकार में ख़ैल-ओ-हशम से दूर

'नाज़िम' ये तार बिजली के निकले है राह ख़ूब

बातें करेंगे यार हो कितना ही हम से दूर

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In Hindi By Famous Poet Syed Yusuf Ali Khan Nazim. is written by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Complete Poem in Hindi by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.