Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_1a779d16b16ee3159ae49a80bb2df5e5, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स - सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम कविता - Darsaal

है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स

है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स

करते हैं बहुत से तिरे हम-शक्ल जुदा रक़्स

बे-ज़ख़्म सदा देने लगे साज़ अजब क्या

गर करने लगें ख़ुद-बख़ुद आलात-ए-ग़िना रक़्स

हो गर न तिरी बाग़ में आने की तवक़्क़ो'

क्यूँ सर्व को तालीम करे बाद-ए-सबा रक़्स

वाँ क़ाफ़िला मंज़िल पे भी पहुँचा मगर अब तक

हम करते हैं सहरा में बा-आवाज़-ए-दरा रक़्स

है वादी-ए-ग़म वो कि गर आ जाएँ इधर ख़िज़्र

राशे से करे हाथ में हज़रत के असा रक़्स

माक़ूल सही वज्द का हीला मगर ऐ शैख़

अच्छा नहीं बा-ईं-हमा-तमकीन-ओ-हया रक़्स

यूँ ही तो ख़राबात में आओ कि सरासर

या बादा है या बंग है या नग़्मा है या रक़्स

याँ तुम को ये आवाज़-ए-दफ़-ओ-चंग मुबारक

बे-कश्मकश-ए-ख़िर्क़ा-ओ-तस्बीह-ओ-रिदा रक़्स

'नाज़िम' तिरे अशआ'र में हैं मा'नी-ए-तौहीद

इस ज़मज़मे पर करते हैं मर्दान-ए-ख़ुदा रक़्स

(514) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Syed Yusuf Ali Khan Nazim. is written by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Complete Poem in Hindi by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.