Ghazals of Syed Yusuf Ali Khan Nazim
नाम | सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम |
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अंग्रेज़ी नाम | Syed Yusuf Ali Khan Nazim |
वो जब आप से अपना पर्दा करें
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा
रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें
क़ाज़ी के मुँह पे मारी है बोतल शराब की
मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत
ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
कभी ख़ूँ होती हुए और कभी जलते देखा
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
हम ने सौ सौ तरह बनाई बात
हम उन की नज़र में समाने लगे
हम को हवस-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर नहीं है
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें
बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था
अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ
आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं