तेरा ये हुस्न-ए-बे-कराँ मुक़य्यद ज़मान है
तेरा ये हुस्न-ए-बे-कराँ मुक़य्यद ज़मान है
मगर तुझे ऐ ज़िंदगी कहाँ कोई गुमान है
निशान खो गया में अपने आप अपने आप का
जहाँ कोई हो बे-निशाँ वहीं मेरा निशान है
न देख ऐ इस इस तराश-तीर को
ज़रा ये देख आ कि किस के हाथ में कमान है
ये दावत-ए-जिहाद बे-महल नहीं है ऐ ज़मीं
किसी फ़क़ीर बे-हुनर का आख़िरी बयान है
मैं रहरव-ए-सिरात-ए-राहज़न था थोड़ी देर को
समझ रहा था मैं मेरी न आँख है न कान है
मेरी नवा-ए-अमन बे-नवा नहीं है ऐ फ़लक
अभी भी जिस्म-ए-ना-तावाँ में बोलने की जान है
सफ़ों में सामईन के जो तो भी आ गया तो सुन
तेरी बिसात-ए-जुस्तुजू का आज इम्तिहान है
(615) Peoples Rate This