चाहूँ तो अभी हिज्र के हालात बता दूँ
चाहूँ तो अभी हिज्र के हालात बता दूँ
फिर क्या है तिरे वस्ल की औक़ात बता दूँ
समझे है तो बस मेरे ज़वाहिर के इशारे
मैं अपने पे आऊँ तो तिरी ज़ात बता दूँ
वो राज़ जो खोलेगा ज़वाहिर की हक़ीक़त
तू बोले बता दूँ तो मैं वो बात बता दूँ
पढ़ सकता हूँ मैं जल्द किताब-ए-रुख़-ए-रौशन
चाहूँ तो मज़ामीन-ए-मक़ालात बता दूँ
सज्दों को मिरे नश्र-ओ-इशाअत का नहीं शौक़
क्यूँ ग़ैर को तख़सीस-ए-इबादात बता दूँ
दुश्मन को तो रक्खूँगा मैं मस्तूर-ए-ज़माना
मुमकिन है कभी अपने मुहिम्मात बता दूँ
मैं भी तिरे हिस्से का सफ़र करता रहा हूँ
अब और तुझे कौन सी सौग़ात बता दूँ
तज्दीद-ए-तफ़क्कुर का तुझे वहम हुआ है
मैं तेरे ख़यालों में तज़ादात बता दूँ
फिर जान गया तेरे लतीफ़ाना सुख़न को
फिर क्या है तिरा राज़-ए-मुदारात बता दूँ
मख़मूर है मदहोश है दुनिया मिरे आगे
कुछ और भी हैं इस के ख़ुराफ़ात बता दूँ
तक़दीर ही कुछ अपनी मटर-गश्त किए है
'तमजीद' ये मुमकिन है महालात बता दूँ
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