गर्द-ए-सफ़र के साथ था वाबस्ता इंतिज़ार
अब तो कहीं ग़ुबार भी बाक़ी नहीं रहा
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क्या तुम भी तरीक़ा नया ईजाद करो हो
ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है
बैठे रहेंगे थाम के कब तक यूँ ख़ाली पैमाने लोग
ये ज़ाद-ए-राह हमेशा सफ़र में रख लेना
फिर कोई चोट उभरी दिल में कसक सी जागी
आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे
इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो
उस से भी ऐसी ख़ता हो ये ज़रूरी तो नहीं
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
रिश्ता रहा अजीब मिरा ज़िंदगी के साथ
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है