किस को ख़बर ये हस्ती क्या है कितनी हक़ीक़त कितना ख़्वाब
किस को ख़बर ये हस्ती क्या है कितनी हक़ीक़त कितना ख़्वाब
दश्त-ए-फ़ना में हैराँ हैं सब ले कर अपना अपना ख़्वाब
लिपटी हुई थी हम से कैसी ख़ुशबू उस की यादों की
आँख खुली तब जाना हम ने देखा था इक प्यारा ख़्वाब
उस के तसव्वुर में क़ुर्बत के धोके कितने खाए हैं
पास जो आए ऐसा लगे है आधी हक़ीक़त पूरा ख़्वाब
खो कर उस को यूँ लगता है जैसे सब कुछ हार गए
अश्कों से हम जोड़ रहे हैं अपना बिखरा बिखरा ख़्वाब
दुख तो यही है इन बातों से तुम कितने अंजान रहे
दिल में बसा कर तुम को हम ने देखा कैसा कैसा ख़्वाब
देख के इस को जाने ऐसी 'सय्यद' जी क्या बात हुई
आँखों की दहलीज़ पे हम ने प्यार भरा इक रक्खा ख़्वाब
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