किन हवालों में आ के उलझा हूँ
तेरी आँखों में ख़ुद को पढ़ता हूँ
कौन मुझ में है बर-सर-ए-पैकार
रोज़ किस से जिहाद करता हूँ
राह मुड़ मुड़ के लौट आती है
घर से जब भी ज़रा निकलता हूँ
रिश्ता-ए-दिल किसी से टूटा है
रोज़ राहें नई बदलता हूँ
आँसुओं से हवा के आँचल पर
किस सितमगर का नाम लिखता हूँ