क्या भरोसा है उन्हें छोड़ के लाचार न जा
क्या भरोसा है उन्हें छोड़ के लाचार न जा
बिन तिरे मर ही न जाएँ तिरे बीमार न जा
मुझ को रोका था सभी ने कि तिरे कूचे में
जो भी जाता है वो होता है गिरफ़्तार न जा
नाख़ुदा से भी मरासिम नहीं अच्छे तेरे
और टूटे हुए कश्ती के भी पतवार न जा
जलते सहरा का सफ़र है ये मोहब्बत जिस में
कोई बादल न कहीं साया-ए-अश्जार न जा
बिन हमारे न तिरे नाज़ उठाएगा कोई
सोच ले छोड़ के हम ऐसे परस्तार न जा
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