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इतने इम्कान कब हुए पहले - सय्यद सग़ीर सफ़ी कविता - Darsaal

इतने इम्कान कब हुए पहले

इतने इम्कान कब हुए पहले

वो पशेमान कब हुए पहले

इस में कोई नहीं है अनहोनी

पूरे अरमान कब हुए पहले

इश्क़ मा'ज़ूर है मशक़्क़त से

हम थे हलकान कब हुए पहले

जैसे मुझ को ग़मों ने लूटा है

ऐसे मेहमान कब हुए पहले

आज़माइश है ये मोहब्बत की

हादसे जान कब हुए पहले

ये भी दाव न उन का हो कोई

ऐसे नादान कब हुए पहले

दश्त आबाद तो नहीं फिर भी

इतने वीरान कब हुए पहले

हुक्म उस का है मेरी बाबत कुछ

सख़्त दरबान कब हुए पहले

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In Hindi By Famous Poet Syed Sagheer Safi. is written by Syed Sagheer Safi. Complete Poem in Hindi by Syed Sagheer Safi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.