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इंसान की हालत पर अब वक़्त भी हैराँ है - सय्यद सग़ीर सफ़ी कविता - Darsaal

इंसान की हालत पर अब वक़्त भी हैराँ है

इंसान की हालत पर अब वक़्त भी हैराँ है

हर शख़्स के हाथों में अपना ही गरेबाँ है

कीचड़ न उछालें हम किरदार पे औरों के

है चाँद बरहना गर सूरज भी तो उर्यां है

अब लोग सबक़ हम से क्यूँ कर नहीं लेते हैं

अब पास हमारे तो इबरत का भी सामाँ है

तब्दीली-ए-ख़्वाहिश पर ये ज़ेहन भी हैराँ है

अब दिल ये मोहब्बत के साए से गुरेज़ाँ है

हर रोज़ ही बहता है रुख़्सार पे रातों की

ये अश्क फ़लक के जो चेहरे पे भी लर्ज़ां है

क्यूँ उस को मोहब्बत का एहसास नहीं होता

आँखों में मिरी अब तो हर दर्द नुमायाँ है

दुनिया से तो लड़ने का आएगा मज़ा कितना

पाने की तमन्ना में मिटने का भी इम्काँ है

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In Hindi By Famous Poet Syed Sagheer Safi. is written by Syed Sagheer Safi. Complete Poem in Hindi by Syed Sagheer Safi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.