तंदुरुस्ती दी ख़ुदा ने तो नक़ाहत न गई

तंदुरुस्ती दी ख़ुदा ने तो नक़ाहत न गई

या'नी तौबा से भी इस्याँ की नदामत न गई

शैख़-जी महफ़िल-ए-रिंदाँ से ये कहते निकले

शुक्र-सद-शुक्र कि बाज़ार में इज़्ज़त न गई

नाम बाक़ी है ज़माना में तो भर पाया

गए मर्दान-ए-ख़ुदा ख़ल्क़ से शोहरत न गई

किस का जल्वा नज़र आया था उसे रोज़-ए-अज़ल

आज तक नर्गिस-ए-बेदार की हैरत न गई

मर गया मर के भी ठंडी न हुई लाश मरी

सोज़-ए-फ़ुर्क़त की मगर दिल से हरारत न गई

ज़र्द नुक़रा नहीं इंसाँ की तरह मुर्दा-पसंद

जो गया क़ब्र में तन्हा गया दौलत न गई

हूर जो तुझ से मुशाबह थी उसी को देखा

मरने के बा'द भी ज़ालिम तिरी उल्फ़त न गई

नफ़स बहकाता है पीरी में तो कहता हूँ 'सख़ा'

क्यूँ ब-शैतान तिरी अब भी शरारत न गई

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In Hindi By Famous Poet Syed Nazeer Hasan Sakha Dehlavi. is written by Syed Nazeer Hasan Sakha Dehlavi. Complete Poem in Hindi by Syed Nazeer Hasan Sakha Dehlavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.