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गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता - सय्यद मुनीर कविता - Darsaal

गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता

गली कूचों में जब सब जल-बुझा आहिस्ता आहिस्ता

घरों से कुछ धुआँ उठता रहा आहिस्ता आहिस्ता

कई बेचैनियों की शिद्दत-ए-इज़हार की ख़ातिर

मुझे हर लफ़्ज़ पर रुकना पड़ा आहिस्ता आहिस्ता

अदम हस्ती फ़ना और फिर बक़ा इक दायरा सा है

समझ में आ ही जाएगा ख़ुदा आहिस्ता आहिस्ता

मसीहाई की सुब्हों सब्र की रातों के आँगन में

लहू बहता रहा बहता रहा आहिस्ता आहिस्ता

फ़सील-ए-शहर बनते ही चले आए अलम उस के

मिरी पहचान का परचम खुला आहिस्ता आहिस्ता

इताअत में भी तहरीम-ए-अना की फ़िक्र लाज़िम है

सर-ए-तस्लीम भी अपना झुका आहिस्ता आहिस्ता

'मुनीर' अहल-ए-तहम्मुल का जुनूँ से वास्ता क्या है

मोहब्बत जुरआ' जुरआ' और वफ़ा आहिस्ता आहिस्ता

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In Hindi By Famous Poet Syed Muneer. is written by Syed Muneer. Complete Poem in Hindi by Syed Muneer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.