तर्क शौक़-ए-शराब क्या करते
तर्क शौक़-ए-शराब क्या करते
ज़िंदगी को ख़राब क्या करते
जब्र ज़ौक़-ए-नज़र पे करते रहे
हुस्न को बे-हिजाब क्या करते
जब थी बदली हुई नज़र उन की
फिर सवाल-ओ-जवाब क्या करते
है ब-हर-शक्ल एक ही जल्वा
हम कोई इंतिख़ाब क्या करते
गर बसाते न जा के वीराना
और ख़ाना-ख़राब क्या करते
बात का रुख़ बदल दिया आख़िर
हम उन्हें ला-जवाब क्या करते
दिल था एहसास-मंद पहलू में
हुस्न से इज्तिनाब क्या करते
ज़ेहनियत अपनी जो बदल न सकें
'अश्क' वो इंक़लाब क्या करते
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