फ़िक्र क्यूँ है क़याम करने की
फ़िक्र क्यूँ है क़याम करने की
कोई मंज़िल नहीं ठहरने की
दाम तक ले गई मुझे परवाज़
दुश्मनी मेरे बाल-ओ-पर ने की
उस सितमगर के जौर-ए-पैहम से
किस को फ़ुर्सत है आह भरने की
जाने क्यूँ हादसे नहीं होते
जब से ठानी है दिल में मरने की
वो भी अब रो रहे हैं सोच के कुछ
थी ख़ुशी जिन को मेरे मरने की
हुस्न की हर अदा की ज़द पे रहे
कितनी जुरअत दिल-ओ-जिगर ने की
देख कर मुझ को रुख़ बदल जाता
एक सूरत है प्यार करने की
किस तवक़्क़ो पे 'अश्क' हम जीते
गर न होती उमीद मरने की
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