ब-हर-सूरत मोहब्बत का यही अंजाम देखा है
ब-हर-सूरत मोहब्बत का यही अंजाम देखा है
कि जाँ दे कर भी इंसाँ को यहाँ नाकाम देखा है
जहाँ पहुँची हैं पर्दे चाक कर के इश्क़ की नज़रें
कहाँ तू ने वो मंज़र ऐ निगाह-ए-आम देखा है
निगाह-ए-यार को बरहम किया है मैं ने ख़ुद अक्सर
कभी जो दर्द को दिल के ज़रा आराम देखा है
लबों तक मेरे बढ़ के ख़ुद ही आ पहुँचा है ऐ साक़ी
नज़र भर कर कभी मैं ने जो सू-ए-जाम देखा है
किया है मुनकिर-ओ-सरकश को भी सैराब दुनिया में
तिरे अब्र-ए-करम ने किस को तिश्ना-काम देखा है
दिल-ओ-जाँ कर दिए नज़्र-ए-निगाह-ए-नाज़ बस मैं ने
न कुछ आग़ाज़ देखा है न कुछ अंजाम देखा है
मरीज़-ए-ग़म की हालत देखने वाले ये कहते हैं
कि बे-होशी में भी लब पर तुम्हारा नाम देखा है
ये अपनी मुख़्तसर है 'अश्क' रूदाद-ए-रह-ए-उल्फ़त
कि बस नाकामियों को साथ हर हर गाम देखा है
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