शहर में साएबाँ बहुत से हैं
शहर में साएबाँ बहुत से हैं
फिर भी क्यूँ बे-अमाँ बहुत से हैं
डर गए एक इम्तिहान से तुम
मेरी जाँ! इम्तिहाँ बहुत से हैं
लुट गया एक कारवाँ तो क्या
राह में कारवाँ बहुत से हैं
राज़-ए-उल्फ़त के हम नहीं मुजरिम
आप के राज़-दाँ बहुत से हैं
तेरी ही हम-नवा नहीं दुनिया
मेरे भी हम-ज़बाँ बहुत से हैं
इस ज़मीन-ए-सुख़न में ऐ 'जामी'
देखना आसमाँ बहुत से हैं
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