मैं अपने-आप से कम भी हूँ और ज़ियादा भी
वो जानता भी है मुझ को तो जानता क्या है
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मैं एक आँसू इकट्ठा कर रहा हूँ
निगह की शोला-फ़ज़ाई को कम है दीद उस की
रद्द-ओ-कद के भी ब'अद रह जाए
फ़क़त क़याम का मतलब गुज़र-बसर कोई है
बाँहों में यार हो, कोई फ़ुर्सत की शाम हो
तिरी आँखों को तेरे हुस्न का दर जाना था
कभी कभी मुझे लगता है वो नहीं है वो
क़रार दीदा-ओ-दिल में रहा नहीं है बहुत
रंग से रास्ता सूरत से पता लेता हूँ
इसी ख़याल से दिल की रफ़ू-गरी नहीं की
ख़ुदा हुआ न कोई और ही गवाह हुआ
इक रोज़ ये सर-रिश्ता-ए-इदराक जला दूँ