तिरी आँखों को तेरे हुस्न का दर जाना था
तिरी आँखों को तेरे हुस्न का दर जाना था
हम ने दरिया को ही दरिया का सफ़र जाना था
मुंतज़िर थे तिरे मल्बूस के सूखे हुए फूल
वो जिन्हें तेरे पहनने से सँवर जाना था
इज़्न-दर-इज़्न चमकते थे सितारे दिल के
आज सब को तिरी आँखों में उतर जाना था
रेज़ा-ए-कुहल के मानिंद किसी रोज़ हमें
तेरी पलकों के किनारे पे बिखर जाना था
वाए इस दिल को न देनी थी कभी रुख़्सत-ए-हिज्र
तेरे होंटों के क़दम चूम के मर जाना था
और फिर यूँ है कि रखती थीं जो इस दिल को ख़राब
उन निगाहों को तिरी और सँवर जाना था
(692) Peoples Rate This