इसी ख़याल से दिल की रफ़ू-गरी नहीं की
इसी ख़याल से दिल की रफ़ू-गरी नहीं की
वो जिस ने ज़ख़्म दिया उस ने मरयामी नहीं की
तिरा वजूद सरासर है मुल्तफ़ित तो फिर
तिरे गुरेज़ ने क्यूँ अब तलक कमी नहीं की
हुआ पड़ा है यूँही कल्बा-ए-नज़र तारीक
कि आज उस के सरापा ने रौशनी नहीं की
कहानियों में ही मिलते हैं कुछ निशाँ मेरे
गुज़ार दी है जो मैं ने वो ज़िंदगी नहीं की
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