बेवफ़ा था तो नहीं वो, मगर ऐसा भी हुआ
बेवफ़ा था तो नहीं वो, मगर ऐसा भी हुआ
वो जो अपना था बहुत और किसी का भी हुआ
तेरी ख़ुशबू भी तिरे ज़ख़्म में मलफ़ूफ़ मिली
तुझ से घाएल भी हुआ और मैं अच्छा भी हुआ
राह दे दी तिरे बादल को गुज़रने के लिए
वर्ना ये दिल तो तिरी प्यास से सहरा भी हुआ
शुक्र वाजिब था इसे तेरी मोहब्बत का, सो दिल
तेरा यूसुफ़ भी रहा, और ज़ुलेख़ा भी हुआ
भीड़ वो थी तिरी चौखट पे तलब-गारों की
कोई बे-लम्स रहा तेरा बुलाया भी हुआ
मैं ने तस्वीर बनाई तो मुख़ातिब भी हुइ
हर्फ़ को हाथ लगाया तो वो ज़िंदा भी हुआ
सज्दा-ए-मर्ग से माथे को उठाया इक रोज़
मैं हुआ ख़ाक तो फिर ख़ाक से पैदा भी हुआ
जितना उजड़ा है कोई शहर-ए-तमन्ना ऐ दिल
कभी लगता ही था इतना बसाया भी हुआ
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