पहले था मोहब्बत का गुमाँ सो वो यक़ीं है
पहले था मोहब्बत का गुमाँ सो वो यक़ीं है
बे-ताबी-ए-दिल हाए ये बे-वज्ह नहीं है
ऐ वाए तिरे रुख़ पे उसी वक़्त नज़र की
जब देख लिया तेरी नज़र और कहीं है
जब तक थे तिरी बज़्म में देखा किए तुझ को
और अब जो नज़र है नज़र-ए-बा-पसीं है
अक्सर नज़र आता है तिरी बज़्म में 'हामिद'
दुनिया ये समझती है कि वो गोशा-नशीं है
(581) Peoples Rate This