हक़ किसी का अदा नहीं होता
हक़ किसी का अदा नहीं होता
वर्ना इंसाँ से क्या नहीं होता
दिल का जाना तो बात बा'द की है
दिल का आना बुरा नहीं होता
क्या हुआ दिल को मुद्दतें गुज़रीं
ज़िक्र-ए-मेहर-ओ-वफ़ा नहीं होता
हुस्न के हैं हज़ार-हा पहलू
एक पहलू अदा नहीं होता
ख़ुद पे क्या क्या वो नाज़ करते हैं
जब कोई देखता नहीं होता
दिल बुझा हो तो ख़ंदा-ए-गुल भी
चुभता है जाँ-फ़िज़ा नहीं होता
ढूँढ लाती है एक शोख़ निगाह
लब पे जो मुद्दआ' नहीं होता
ख़ूँ बहाते हैं बे-गुनाहों का
ये कोई ख़ूँ-बहा नहीं होता
ज़िंदगी में हैं तल्ख़ियाँ फिर भी
आदमी बे-मज़ा नहीं होता
हक़ तो 'हामिद' ये है कि हक़ के सिवा
कोई मुश्किल-कुशा नहीं होता
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