बात वो बात नहीं है जो ज़बाँ तक पहुँचे
बात वो बात नहीं है जो ज़बाँ तक पहुँचे
आँख वो आँख है जो सिर्र-ए-निहाँ तक पहुँचे
क़द्र ताज़ीम कशिश शौक़ मोहब्बत इज़हार
रोकिए दिल को न जाने ये कहाँ तक पहुँचे
दिल ये हर-गाम पे कहता है ठहर घर है यही
फ़र्क़ से ता-ब-क़दम आँख जहाँ तक पहुँचे
किस को फ़ुर्सत है सुने दर्द-भरी है रूदाद
कौन बेचारगी-ए-ख़स्ता-दिलाँ तक पहुँचे
जान लेना ये उसी लम्हा कि दिल टूट गया
बात जब ज़ब्त से बढ़ जाए फ़ुग़ाँ तक पहुँचे
मुड़ के देखा भी नहीं दिल के लहू की जानिब
शे'र की दाद ये दी हुस्न-ए-बयाँ तक पहुँचे
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