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आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी - सय्यद हामिद कविता - Darsaal

आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी

आई नहीं क्या क़ैद है गुलशन में सबा भी

आने लगी ज़ंजीर की कानों में सदा भी

पा जाएगा दिल उस में भी तख़सीस के पहलू

मा'लूम ये होता तो न करते वो जफ़ा भी

ढूँडा किए हर गाम पे हाथों का सहारा

भूले से कभी बहर-ए-दुआ हाथ उठा भी

शाने पे बिखेरे हुए निखरी हुई ज़ुल्फ़ें

बरसी भी तो घनघोर अजब है ये घटा भी

भाया है जो मुखड़े को छुपाने का तरीक़ा

देखो कभी आँखों को चराने की अदा भी

जैसे हो कँवल आब में पाकीज़ा तबीअ'त

रहते हुए दुनिया में हैं दुनिया से जुदा भी

हर आन जफ़ा जान के करते हो सितम है

हर साँस ये कहती है कि हो जान-ए-वफ़ा भी

आँखें ये बताती हैं कि दिल और कहीं है

कहना था मुझे तुम से अभी इस के सिवा भी

मुमकिन है गिरे कोई हिमाला से तो उठ जाए

'हामिद' कभी उट्ठा है निगाहों से गिरा भी

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In Hindi By Famous Poet Syed Hamid. is written by Syed Hamid. Complete Poem in Hindi by Syed Hamid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.