मुझ को तन्हा जो पा रही है रात
मुझ को तन्हा जो पा रही है रात
ख़ौफ़ से सहमी जा रही है रात
किस की यादों की चाँदनी चटकी
किस लिए जगमगा रही है रात
कौन याद आ गया है पिछले पहर
जाते जाते फिर आ रही है रात
हर तरफ़ है सुकूत-ए-ग़म तारी
दास्ताँ क्या सुना रही है रात
ग़म-ज़दा दिल है और भी ग़मगीं
गीत क्या गुनगुना रही है रात
दिल के सहरा में ज़ख़्म खिलते हैं
दर्द कैसा जगा रही है रात
कितने सुनसान रास्ते हैं 'मतीन'
कितनी चुप-चाप जा रही है रात
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