छुट्टी का दिन है चाहिए जैसे गुज़ारिए
छुट्टी का दिन है चाहिए जैसे गुज़ारिए
मुर्ग़ा लड़ाइए कि कबूतर उड़ाइए
सड़कों पे घूमने से तबीअत हो जब उचाट
होटल में बैठ जाइए क़िस्से सुनाइए
खा खा के पान फूँकिए सिगरेट नौ-ब-नौ
पेशावरान-ए-शहर से पेंगें बढ़ाईए
अफ़सर को दीजे घर पे बुला दावत-ए-निगाह
दफ़्तर में जा के रोब फिर अपना जमाइए
रिश्वत के दम-क़दम से सलामत है ज़िंदगी
दिल खोल कर तमाम ही ख़ुशियाँ मनाइए
हर वक़्त घर में बैठने से फ़ाएदा 'मतीन'
चल फिर के ज़िंदगी के तजरबे उठाइए
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