नशा नशा सा हवाएँ रचाए फिरती हैं
खिला खिला सा है मौसम तिरे सँवरने का
मैं अक्स अक्स छुपा हूँ हज़ार शीशों में
मुझे है शौक़ ये रंगों से अब गुज़रने का
कटेगी डोर न जब तक उलझती साँसों की
तमाशा ख़ूब रहेगा ये रूप उभरने का
ये रोज़ रोज़ सितारों का टूटना 'आरिफ़'
सबब बना है ज़मीं के शिगाफ़ भरने का